आपले आपण | रुजविता स्वप्न
त्यात होई मग्न | अंतर्मन ||
विश्वास आधार | विश्वास आचार
विश्वासाचा भार | सर्वथैव ||
शब्द शोधू जाता | कैक गवसती
शब्द फोफावती | अमर्याद ||
अदृश्य तरीही | मजबूत पाया
अन्य तर्क वाया | अर्थाअर्थी ||
भावना भिजते | भावना रुजते
भावना थिजते | खोलवर ||
मात्र जाणवे ना | भावनेचा पाया
तर्क भ्रमवाया | सिद्ध नित्य ||
शब्दाच्या जादूची | तर्कास झालर
युक्तिवाद थोर | भासे सत्य ||
स्वतास स्वताचे | मन उमगेना
त्यात शब्द नाना | धुमसती ||
दडलेले हिंस्त्र | श्वापद जिवात
दबकत आत | वावरते ||
चाणाक्ष चतुर | राहतात धूर्त
फक्त निरखत | इतरांस ||
निरखूनी सारी | अदृश्य श्वापदे
एक एक प्यादे | हालविती ||
शब्दांच्या ठिणग्या | शब्दांचे इंधन
वेळीच टाकून | पेटविती ||
समाज घडती | समाज सडती
समाज जळती | यथाकाल ||
राख राखेवर | थरावर थर
दाह निरंतर | चालतोच ||
कुणीही काहीही | स्वप्न रुजविणे
इतकेच लेणे | जगण्याला ||
- निलेश पंडित
२४ मार्च २०२२
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